रायपुर: छत्तीसगढ़ में अब पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों की भूमिका बढ़ सकती है। 1990 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने पंचायत चुनावों में पार्टी चिन्हों का प्रयोग किया था, जिससे चुनाव हर गांव में पहुंचे और सफल रहे। अब छत्तीसगढ़ में भी पंचायत चुनावों में दलीय आधार पर चुनाव को लेकर चर्चा तेज है, और अगर ऐसा हुआ तो यह राज्य में पहली बार होगा।

राज्य में आमतौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होता है। कुछ अन्य पार्टियां भी चुनावी मैदान में हैं, लेकिन उनका जनाधार सीमित रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी ने 2016 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे), बनाई। उनकी पार्टी को चुनाव में पहचान उनके नाम से मिली, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में वह खास प्रदर्शन नहीं कर पाई।

अब पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों का सीधा असर देखने को मिल सकता है। पहले पंचायत सदस्य अपने नाम पर ही चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब राजनीतिक दलों का सीधे चुनाव में भाग लेना संभव है।

स्थानीय चुनावों में आम तौर पर उम्मीदवार की लोकप्रियता और उनके व्यवहार को ही प्राथमिकता दी जाती है। यदि किसी पार्टी का उम्मीदवार अपने क्षेत्र में प्रभावी नहीं है, तो स्थानीय लोग उसे नकार सकते हैं। अब पंचायत चुनावों में पार्टी चिन्ह से उम्मीदवार को एक नई पहचान मिलेगी। इससे राजनीति में नई प्रतिस्पर्धा होगी और दूसरी पार्टियों को भी अपनी जगह बनाने का मौका मिलेगा।

पार्टी से जुड़े प्रत्याशी आम तौर पर स्थानीय मुद्दों पर काम करते हैं और जनहित में सक्रिय रहते हैं, तभी उन्हें वोट मिलता है।

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